Wednesday, June 25, 2014

बजर गिरे इस अर्थव्यवस्था पर! बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता ह – हम राज करें, तुम राम भजो! जोर का झटका धीरे से लगे।दाम बढ़ाकर राहत का पुराना खेल।महानगर केंद्रित जनांदोलनों के मध्य अब पेंशन,पीएफ ग्रेच्युटी भी बाजार के हवाले ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे।

बजर गिरे इस अर्थव्यवस्था पर!



बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता ह – हम राज करें, तुम राम भजो!

जोर का झटका धीरे से लगे।दाम बढ़ाकर राहत का पुराना खेल।महानगर केंद्रित जनांदोलनों के मध्य अब पेंशन,पीएफ ग्रेच्युटी भी बाजार के हवाले ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे।

पलाश विश्वास
बजर गिरे इस अर्थव्यवस्था पर!
बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता है – हम राज करें, तुम राम भजो!यह कविता सबसे आखिर में।




कोलकाता पर बज्जर गिराने वाले दिवंगत कवि त्रिलोचन के शब्दों को उदार लेकर कहें,कह सकें तो बेहतर,बज्जर गिरे इस अर्थ व्यवस्था पर।कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।इस त्रयी में से बाबा नागार्जुन और शास्त्री जी से संवाद रहा है,लेकिन शमशेर को कभी छू नहीं पाया।

बजरबट्टू का अर्थ मूर्ख और उसकी व्युत्पत्ति वज्र और वटुः से है. ... शब्दकोशों में तो साफतौर पर बजरबट्टू को नजर से बचाने वाली माला या टोटका बताया गया है। ...त्रिलोचन की चंपा ने तो कलकत्ते पर बजर ही गिरा दिया था।

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं.

चंपा सुंदर की लड़की है
सुंदर ग्वाला है : गाय भैसे रखता है
चंपा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है
चंपा अच्छी है
चंचल है
नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करेती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूँढ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ - अब काग़ज़ गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चंपा कहती है:
तुम काग़ज़ ही गोदा करते हो दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चंपा चुप हो जाती है
उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है -
सब जन पढ़ना लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी
मैंने कहा चंपा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे संदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चंपा पढ़ लेना अच्छा है!
चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूँगी
कलकत्ता में कभी न जाने दूँगी
कलकत्ता पर बजर गिरे।

चंपा हमारी तरह बजरबट्टू नहीं है।बालम से विछोह का असली कारण काले अक्षर न चीन्हने वाली चंपा को खूब मालूम था।

बजर मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था पर गिरने के कोई आसार जाहिर है नहीं इस बजरबट्टुओं के देश में।पहले दाम बढ़ाते हैं,पहले टैक्स बढ़ाते हैं,फिर बड़े प्यार से सहलाते हुए थोड़ा बोझ कम करते हैं।थोड़ा सा बोझ जो कमहुआ तो बजरबट्टू खुश।रेलकिराया बढ़ोतरी का असर आम जनता पर सबसे ज्यादा होना है।रेल माल भाड़े बजरिये उसकी अर्थव्यवस्था पर बजर तो गिर ही गया है।पर आम जनता खुद गोलबंद नहीं हो सकती।उसके नुमाइंदे सारे के सारे अब अरबपति हैं या करोड़पति,जिनकी अलग अर्थ व्यवस्था है।राजनीति पर वे ही काबिज।संगठित क्षेत्रों की ही सुनी जाती है।संगठित क्षेत्रों में दलालों और बिचौलियों का वर्चस्व है और तमाम युनियनों और संगठनों पर भी उन्हीं का कब्जा।

सामने विधानसभाओं के चुनाव हैं।वोटों की परवाह करनी पड़ी रही है।महानगरों और उपनगरों में जनाक्रोश संगठित हो गया,तो राज्यों में सत्ता मुश्किल हो सकती है।बस,इसलिए भैंस गयी पानी में।पानी से निकलते ही सींग मारने लगेगी।लकल भाड़ा और मंथली स्थगित हुआ है,वापस लेकिन हुआ नहीं है।

यात्री किराया और मालाभाड़े पर सारा शोरशराबा है लेकिन कोई माई का लाल रेलवे में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश पर बोल नहीं रहा है।किराया और भाड़ा बढ़ाना असली एजंडा नहीं है, न यह कोई सुधार है।सुधार तो निर्विरोध हो गया।रेलवे का बेसरकारीकरण बिना हंगामा हो गया। बढ़े हुए रेल किराये का असर बुधवार से दिखने लगेगा। माल भाड़ा के अलावा यात्रा भाड़ा में रात 12 बजे के बाद ही बढ़ोतरी हो जाएगी। घड़ी की सूई जैसे ही 12 बजे पर जा टिकेगी वैसे ही टिकट पर बढ़े हुए किराये का मूल्य भी दिखने लगेगा। रात 12 बजे के बाद लोगों को बढ़ा हुआ किराया अदा करना पड़ेगा। रेल मंत्रालय की ओर से यात्रा भाड़ा में 14.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। इस हिसाब से यह माना जा रहा है कि दिल्ली का किराया 100 रुपये के आसपास होगा। फिलहाल यह किराया 85 रुपये है। लेकिन इस बारे में पूरी जानकारी रात 12 बजे के बाद ही मिल पाएगी।

इसी तरह तेल गैस की कीमतें.या उर्वरक चीनी की कीमतें असली मुद्दे नहीं हैं।असली मुद्दा है विनियंत्रण का।असली मुद्दा है सब्सिडी का।कीमते विनियंत्रित हैं।यानी बाजार तय करेंगी कीमते तो कीमतों का विरोध करके आप किसका क्या उखाड़ लेंगे।जबकि विनियंत्रण का आपने कोई विरोध किया ही नहीं है।सब्सिडी खत्म करने के लिए आप बायोमेट्रिक नागरिक हो गये हैं।सब्सिडी खत्म की जा रही है।यह इकानामिक आटोमेशन है।आटो रन है।सरकार को कुछ लोकप्रियअलोकप्रिय करने का है ही नहीं।कीमतें बाजार तय करेंगी।पांच रुपये दस रुपये बढ़ने का मामला यह नहीं है,कीमतों के निरंकुश हो जाने का मामला है।राजनीतिक हस्तक्षेप से कीमतें स्थगित हो सकती हैं।घटायी जा सकती है लेकिन प्रक्रिया जारी रहेगी।इस डीफाल्ट प्रकिया को डीएक्टिवेट करने की बात नहीं कर रहा कोई माई का लाल।

अब आलम यह देखिये,डीजल के बाद सरकार रसोई गैस व केरोसिन के दाम भी हर माह बढ़ाना चाहती है, ताकि इनके मद की 80000 करोड़ रुपये की सब्सिडी को समाप्त किया जा सके।खुल्मखुल्ला खेल है। सरकार एलपीजी सिलिंडर के दाम हर माह पांच रुपये व केरोसिन के दाम 0.50-1.0 रुपये महीना बढ़ाना चाहती है।पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीजल मॉडल पर ही एलपीजी व केरोसिन के दाम में मासिक बढोतरी का प्रस्ताव किया है। एलपीजी पर सब्सिडी इस समय 432.71 रुपये प्रति सिलिंडर (14.2 किलो) है। पांच रुपये मासिक वृद्धि के हिसाब से इस सब्सिडी को समाप्त करने में सात साल लगेंगे। केरोसिन पर सब्सिडी इस समय 32.87 रुपये प्रति लीटर है

सरकार की विनिवेश की प्रक्रिया तेज होती दिख रही है। सरकार की वित्त वर्ष 2015 में ओएनजीसी, आरईसी और पीएफसी में 5 फीसदी हिस्सा बेचने की योजना है। सरकार नेकॉनकोर और एनएचपीसी में 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए कैबिनेट नोट जारी किया है।सूत्रों का कहना है कि सरकार की विनिवेश योजना सेबी के नियमों के अनुसार होगी। वहीं बाल्को के वैल्यूअर की नियुक्ति 16-17 जुलाई के बीच संभव है। साथ ही हिंदुस्तान जिंक के वैल्यूअर की नियुक्ति 2-3 जुलाई के बीच संभव है।

वाहन और टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद क्षेत्रों के लिए राहत भरे निर्णय के तहत सरकार ने इन उद्योगों के लिए उत्पाद शुल्क रियायत की समयसीमा छह महीने के लिए बढ़ा दी। बुधवार को की गयी इस घोषणा के अनुसार उन्हें आगामी 31 दिसंबर तक रियायत मिलती रहेगी। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के अंतरिम बजट में कार, एसयूवी एवं दोपहिया वाहन और टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी ताकि इन उद्योगों को मांग में कमी से उबरने में मदद मिल सके।


हमारे बचपन में मासिक धर्म पर चर्चा निषिद्ध था और अब मुक्त बाजार के उपभोक्ता संस्कृति में सबकुछ मासिक ईसीएस है। कैंसर की तरह भीतर से खोखला कर दें और वह कैंसर आखिरकार आपकी हर कोशिका को अचल कर दें,इसकी कोई परवाह नहीं।मासिक धर्म से जैसे बेफिक्री का कारोबार अब गोरा बनाओ उपक्रम की तरह फायदेमंद कारोबार है,उसीतरह जंक माल खपाने का यह मासिक बंदोबस्त भी नायाब है।जिबह करने की विशेषज्ञता का क्या कहिये।

अब जो दीर्घकाल से लंबित है,उसकी बारी है।यानी पेंशन,पीएफ और ग्रेच्युटी से लेकर जमापूंजी बाजार में डालने का एजंडा।हाथी तो निकल ही गया है,पूंछ बाकी है।निजी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस देकर बैंकिंग को पंजी स्कीम बना दिया गया है।जमा पूंजी निजी बैंकों के मार्फत बाजार में स्वाहा होने का रास्ता तैयार हो गया है।अब बाकायदा कानून बनाकर पीएफ पेंशन और ग्रेच्युटी को बीमा की तरह बाजार में खपाने की तैयारी है और यह पुण्यकर्म बिना रोकटोक हो जायेगा।

इस देश में प्रोमोटर बिल्डर राज अब इन्फ्रास्ट्रक्चर है।जोर का झटका धीरे से लगे,इसके लिए जैसे पहली राजग सरकार ने बेसरकारीकरण को विनिवेश बताकर महिमामंडित किया है और बजरबट्टू जनता को तो क्या,बेसरकारीकरण के शिकार होकर फुटपाथ पर भिखारी बनकर खड़े होते हुए मलाईदार पढ़े लिखे लोगों को भी अभी ठीक ठीक मालूम नहीं हुआ कि विनिवेश का खेल क्या है।

लगातार दो साल में आर्थिक वृद्धि दर 5 फीसदी से नीचे रहने के बीच वित्त सचिव अरविंद मायाराम ने कहा है कि अगर आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए विदेशी संसाधन जुटाने की जरूरत पड़ी तो भारत एफआईआई के बजाय एफडीआई को वरीयता देगा। मायाराम ने कहा, 'मेरा मानना है कि हमारा संभावित वृद्धि दर 8 फीसदी है और वहां पहुंचने के लिए हमें संसाधनों का विकास करना होगा। हमे ये केवल घरेलू स्तर पर नहीं जुटा सकते। संसाधन विदेश से भी आएंगे और अगर यह विदेश से आता है तो हम विदेशी संस्थागत निवेश के बजाय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को वरीयता देंगे।' भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2012-13 में 4.5 फीसदी रही जो कि दशक में सबसे कम है। यह 2013-14 में 4.7 फीसदी रही।

चुनौतीपूर्ण' अर्थव्यवस्था को संभालने के काम में लगे वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आज कहा कि अब ऐसे उपाय करने का समय आ गया है जिससे देश तीव्र आर्थिक वृद्धि के मार्ग पर ले जाया जा सके और निवेशकों का भरोसा बहाल किया जा सके। जेटली ने कहा 'वित्त मंत्रालय के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है और यह चुनौतीपूर्ण इसलिए है कि पिछले दो साल में आर्थिक वृद्धि की दर नरम रही है इस दिशा में जो भी कदम उठाना है उनके लिए सही समय है।'

वह रक्षा और कॉरपोरेट मामलों के भी मंत्री हैं। नौसेना के एक समारोह जेटली ने कहा कि पिछले दो साल आर्थिक वृद्धि दर 5 फीसदी से नीचे रही। इससे राजस्व संग्रह प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा 'मैंने पिछले तीन-चार हफ्तों में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज करने और इसमें निवेशकों का भरोसा बहाल करने और संबद्ध पक्षों के साथ बातचीत कर इसे लीक पर लाने की योजना बनाने का काम किया है।'

जेटली अगले महीने की 10 तारीख को नई सरकार का पहला बजट पेश करने वाले हैं और उसने उद्योग और कृषि संगठनों के साथ विभिनन संबंद्ध पक्षों के साथ बातचीत की। सरकार ऐसे समय में बजट पेश करेगी जबकि देश उच्च मुद्रास्फीति, विशेष तौर पर ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव और उच्च राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है। सामान्य से कम बारिश के संकेत और तेल उत्पादक देश इराक में संघर्ष से सरकार की चिंता बढ़ सकती है।


जैसे जनता विकास के नाम पर बम बम है।विकास के केदार हश्र का समीकरण जनता को नहीं मालूम।जल जंगल जमीन और आजीविका से विकास का रिश्ता भी जनता नहीं समझती।विकास दरअसल निर्बाध प्रमोटर बिल्डर राज है।टेडर भरकर बिना काम किये बिना भुगतान किये योजनाओं की फसल जेबों में भरने का काम,जिसे अब सामाजिक योजना भी कहा जाने लगा है।आगामी बजट में वही इन्फ्रा का बोलबाला होना है।वही लंबित परियोजनाओं को हरी झंडी देने का युद्ध गृहयुद्ध का घोषणापत्र होना है बजट। विदेशी निवेशकों के लिए खुल्ला दरवज्जा है। विदेशी कंपनियों को भारत में कमाई पर टैक्स भी नहीं भरना है।टैक्स भरने के लिए बजरबट्टू जनता है।

यह अर्थ व्यवस्था कैसी होती है,निजी अनुभव से महसूस करने की कोशिश करें।मेरा कंप्यूटर इस महीने दो दो बार कराब हुआ।ठीक कराया।तो वज्रवृष्टि से बूढ़ी टीवी कोमा में है।सर्किट बदलकर प्राण फूकने की बात कर रहे हैं टेक्नीशियन। घाटे के बजट में यह मामला लंबित है।घर पखवाड़े भर से टीवीमुक्त है।तीन महीने का बिजली का बिल बकाया है और फ्रिज मरणासण्ण है। केबल का बिल दो महीने से भरा नहीं है जो अबकी दफा बढ़ने वाला है।मेडिकल बिल महीनों से बकाया है तो न्यूज पेपर का बिल भी।

गौरतलब बात यह है कि इनमें से कोई भी समस्या हमारी बुनियादी जरुरत से जुड़ी नहीं है।नागरिक जीवन की आधुनिकता की शर्तें पूरी करने में हम बेहाल हैं।जो भी कमाया,बाजार में खप गया।इसी सिलसिले में गौरतलब है कि  नौकरीपेशा महिलाओं के अच्छे दिन आने वाले हैं। जुलाई में पेश होने वाले आम बजट में नौकरीपेशा महिलाओं को बड़ी राहत मिल सकती है। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्री अरूण जेटली साल 2014-15 के बजट में नौकरीपेशा महिलाओं को इनकम टैक्स में मिलने वाली छूट की सीमा को बढ़ा सकते हैं। समाचार पत्र के मुताबिक सरकार महिलाओं के इनकम टैक्स से जुड़े स्लैब को बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। प्रस्ताव के तहत पूर्व में महिलाओं को पुरूषों की तुलना में इनकम टैक्स में ज्यादा छूट देने जैसी व्यवस्था को फिर से लागू कर सकती है।

गौरतलब है कि निजी क्षेत्र कंपनियों (छोटी कंपनियों सहित) को नियामकीय बोझ से राहत देने के इरादे से सरकार ने नई कंपनी कानून में ऐसी इकाइयों के लिए कुछ प्रावधानों को उदार बनाने का प्रस्ताव किया है। सरकार ने इन कंपनियों को जिन प्रावधानों में राहत देने का प्रस्ताव किया है उनमें जनता से जमा स्वीकार करने पर पाबंदी, शेयर पूंजी, वोटिंग अधिकार, आगे शेयर जारी करना, ऑडिटर व निदेशक की नियुक्ति, बोर्ड अधिकारों पर अंकुश, निदेशकों को कर्ज, संबंधित पक्ष लेनदेन और शीर्ष प्रबंधन पर नियुक्ति संबंधी शामिल नियम हैं।अधिसूचना के मसौदे के जरिए कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए कंपनी कानून के 13 प्रावधानों को उदार बनाने का प्रस्ताव किया है। नया कंपनी कानून इस वित्त वर्ष की शुरूआत से अस्तित्व में आया है। मंत्रालय ने सर्कुलर में कहा है कि अधिसूचना के मसौदे को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा। 1 जुलाई तक इन पर सुझाव व टिप्पणियां मांगी गई हैं।


सर्वग्रासी बाजार ही बजरबट्टू जनता की अर्थ व्यवस्था है,जिसकी मार से उसकी रोजमर्रे की जिंदगी लहूलुहान है।देश की अर्थव्यवस्था से उसका लेना देना नहीं है।उसकी नजर से अर्थव्यवस्था पर बात करना देशद्रोह है।देश की अर्थ व्यवस्था पर काबिज लोग असली देशभक्त हैं।असली देशभक्तों को ही देस बेच डालने का भी हक है और जो उनका विरोध करें ,वे तमाम लोग देशद्रोही हैं।

साठ के दशक में यूपीवाले लोग जनसंघ को बनियों की पार्टी बताते थे।दीपक शहरों में जलता था तब,गांवों में नहीं।इसी के मध्य सन सड़सठ के आम चुनावों मे देशव्यापी मोहभंग के परिदृश्य में यूपी विधानसभा में जनसंघ को निनानब्वे सीटें मिल गयीं।इंदिरा जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर पाबंगी लगाकर आपातकाल में संघियों को मीसाबंदी बनाकर जनसंघ का कायाकल्प कर दिया।बजरिये जनता पार्टी और वाम समर्थन जनसंघ का कायाकल्प हो गया और अब देस के कोने कोने में कमल खिल रहा है।यूपीवालों के नाती पोते अब सारे के सारे बनिया पार्टी में हैं।

महात्मा गांधी की राजनीतिक भूमिका रामराज की स्थापना देने में है और धर्म का सबसे पहले कामयाब राजनीतिक इस्तेमाल उन्होंने ही किया।मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा से भी पहले।इससे भी बड़ा योगदान गांधी का यह है कि कायस्थों और राजपूतों को किनारे करके सत्तावर्ग में ब्राह्मणों के साथ बनिया संप्रदाय को स्थायित्व देना।अब मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में भी बनियाराज है,संघी बाम्हणों की तरह ब्राह्मण भी हाशिये पर हैं।लेकिन ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद विरोधी राजनीति के अभ्यस्त लाल नील राजनीति इस बनियाराज के खिलाफ कुछ भी कहने करने की हालत में नहीं है।गांधी की ह्त्या के मामले में अभियुक्त संघ परिवार को कम से कम इस लिहाज से गांधी और गांधीवादियों का आभार मानना चाहिए।

रेलकिराया में राहत के ऐलान के मध्य मंगलवार देर रात दो बजे नई दिल्ली-डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस बिहार के छपरा के पास हादसे का शिकार हो गई। ट्रेन की नौ बोगियां पटरी से उतर गईं, जिसके चलते 4 लोगों की मौत हो गई और 9 लोग घायल हो गए। गृह मंत्रालय ने बिहार पुलिस से हादसे की रिपोर्ट तलब की है। बताया जाता है कि राज्‍य आईबी ने नक्‍सल बंद के दौरान हिंसा का अलर्ट भेजा था। हादसे पर डीआरएम ने कहा कि घटना स्‍थल से करीब 17 पेंड्रोल क्लिप बरामद हुए हैं। ये क्लिप पटरी को सीमेंट के स्‍लैब से जोड़े रखती है। उधर, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि रेल हादसे को नक्‍सलियों से जोड़ना अभी जल्‍दबाजी होगी।

इससे पहले कोलकाता में रेल किराया विरोधी प्रदर्शनों के मध्य मेट्रो ट्रेन की इंजन विकल हो जाने से यात्रियों को करीब दो घंटे अंधेरी सुरंग में आक्सीजन के लिए जूजना पड़ा।

नई ट्रेनें शुरु करने से पहले सुरक्षा इंतजामात और रेलवे ट्रैक को दुरुस्त करने की परिपाटी है नहीं।इन्ही बेपटरी पटरियों पर बुलेट ट्रेनें दौड़ाने का क्वाब सजाये हम बजरंगी भारतीय रेलवे को दुनिया की नंबर वन रेलवे बनाने पर तुले हैं।नंबर वन बनाने के लिए एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल डिब्बे ही खत्म किये जा रहे हैं।आधे से ज्यादा वातानाकूलित ट्रेन में बाकी बचे डिब्बों में भेड़ बकरियों की तरह सफर करने वालों को कोई राहत लेकिन दी नहीं गयी है।महानगरों को दौड़ने वाली लोकल ट्रेनों के रोजाना पैसेंजरों को खस कने की कवायद हो रही है।

फिर मजा देखिये,इराक संकट के मद्देनजर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद है और निवेशकों को हर छूट दी जारी है।इतनी ज्यादा छूट कि तेलकुओं की आंच से झलसे सांढ़ों की उछल कूद फिर शुरु हो गयी है लेकिन सरकार ने बुधवार को कहा है कि वह हिंसाग्रस्त इराक में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। सभी सुझावों पर विचार हो रहा है। राजनाथ से सवाल किया गया था कि क्या भारत इराक में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए बड़े अभियान की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा कि हम इराक में हर भारतीय की सुरक्षा के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। भारत ने स्थानीय अधिकारियों की मदद से हिंसाग्रस्त इलाकों से 17 और भारतीयों को सुरक्षित निकाला है।

मजे के लिए जानकारी और भी है,तेल संकट का असलियत भी जान लीजिये।आशंकाओं के विपरीत विश्वबाजार में तेल की कीमते बढ़ने के बजाय घटी है।तो केन्द्र ने आज इराक की स्थिति पर चिंता जताते हुए उम्मीद जताई कि खाड़ी देश में अशांति की स्थिति से भारत में तेल आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी।  रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा, 'चिंता का नया विषय इराक है। हमारी तेल पाइपलाइनें दक्षिणी इराक से आती हैं। अभी तक आतंकवादियों ने इस पाइपलाइन को निशाना नहीं बनाया है लेकिन सरकार मुद्दे पर करीबी निगाह रख रही है।'

धर्म प्राण जनता के लिए गंगास्नान के संदर्भ में यह जानकारी लाभदायक हो सकती है।गंगा में डुबकी से आपको कैंसर हो सकता है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा की सफाई पर जोर देने की बात कह चुके हैं, लेकिन लगता है कि इस दिशा में तेजी से और अपेक्षा से ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है। 'द डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी नेशनल सेंटर फॉर कंपोजीशनल कैरेक्टराइजेशन ऑफ मैटीरियल्स' (NCCM) ने गंगा के वॉटर सैंपल की जांच की है। जांच में पानी में कैंसर कारक तत्व पाए गए। ये वॉटर सैंपल जनवरी 2013 में हुए कुंभ मेले के दौरान लिए गए थे। एनसीसीएम भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के अंतर्गत काम करती है। जहरीला तत्व 50 गुना ज्यादा है सुरक्षा स्तर से।गंगा का यह हाल है तो बाकी नदियों की सेहत की पूछेये मत।यह भी मत पूछिये कि नदियों को जहरीली बनाने वाले कौन लोग हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की कमान संभाले एक महीना बीत चुका है।लेकिन 30 दिन में सरकार ने केवल एक ही सख्त फैसला लिया है और वह है कि रेल बजट से पहले यात्री किराये में 14.2 फीसदी का इजाफा। इसी से त्राहि त्राहि है। महंगाई और रेलकिराय तो झांकी है,अभी अंबानी का उधार बाकी है।पूर्वव्रती सरकार के फैसले को बहाल रखने के लिए रेल किराया बढ़ा दिया लेकिन मोदी सरकार पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का नामोनिशां मिटाने पर ही आमादा लग रही है। इसके लिए वह संप्रग द्वारा नियुक्त राज्यपालों से इस्तीफे मांग चुकी है और राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जैसे संवैधानिक संस्थानों के प्रमुखों को भी हटाने में जुटी है।पूर्ववर्ती सरकार के जमाने में पास भूमि अधिग्रहण कानून ,खनन संशोधन अधिनियम और खाद्यसुरक्षा अधिनियम भी बदलने की तैयारी है।प्रधानमंत्री कार्यालय में अन्य नियुक्तियां भी हैरान करने वाली हैं।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के पूर्व चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा को पीएमओ में प्रमुख सचिव नियुक्त करने के लिए सरकार ने एक अध्यादेश के जरिये ट्राई अधिनियम ही बदल डाला।

अलबत्ता सरकार ने अपने पहले 30 दिनों में कई अहम मुद्दों पर सक्रियता भी दिखाई है। कामकाज संभालने के बाद पहले ही दिन मंत्रिमंडल ने काले धन की जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन की घोषणा की थी। फैसले लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए करीब दर्जन भर अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूहों और मंत्रिसमूहों को समाप्त करने का उसका निर्णय भी सुर्खियों में रहा। इस फैसले को उद्योग जगत के साथ ही अफसरशाहों ने भी काफी सराहा। नीतिगत मोर्चे पर छाई सुस्ती दूर करने के लिए सरकार ने मंत्रालयों को ताकीद की है कि वे कैबिनेट प्रस्ताव तैयार करने की खातिर अंतर मंत्रालयी चर्चा पूरी करने में दो हफ्ते से ज्यादा वक्त बिल्कुल नहीं लगाएं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने सरकार के वरिष्ठ अफसरों से भी सीधा संपर्क साधने की पहल की।

लेकिन स्विस सरकार ने साफ किया है कि उसने भारत सरकार के साथ कुछ भी अबतक शेयर नहीं किया है।नई सरकार के सामने कमजोर मॉनसून, मुद्रास्फीति और इराक संकट जैसी प्रमुख चुनौतियां हैं। मोदी ने हाल ही में कहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कड़े फैसले जरूर उठाए जाने चाहिए और यह सख्त कदम वक्त की जरूरत है क्योंकि संप्रग की सरकार ने अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक कर रखी थी। अब सबकी निगाहें 10 जुलाई के बजट पर है कि सरकार के इस वक्तव्य का क्या मतलब था और वह क्या कदम उठाने वाली है।उद्योग इस बात को लेकर काफी खुश है कि मोदी सरकार सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हट रही है हालांकि बजट से ही कई चीजें साफ हो पाएंगी। सरकार ने वोडाफोन के मामले में पहले ही यह संकेत दिया है कि वह कानून में बदलाव कर कंपनियों पर पुरानी तारीख से कर लागू करने के खिलाफ है। सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों को नियंत्रित तरीके से ही संवाद करने की इजाजत दी गई है।


जोर का झटका धीरे से लगे।दाम बढ़ाकर राहत का पुराना खेल।महानगर केंद्रित जनांदोलनों के मध्य अब पेंशन,पीएफ ग्रेच्युटी भी बाजार के हवाले ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे।ऑयल एंड गैस शेयरों में खासकर ऑयल मार्केटिंग कंपनियों में ज्यादा तेजी हो चुकी है। जिस तरह सरकार की योजना है अगर डीजल डीरेगुलेशन हुआ तो ओएनजीसी, ऑयल इंडिया में मौजूदा स्तरों से भी ज्यादा रिटर्न आने का अनुमान है।हालांकि सरकार की इंफ्रा सेक्टर को रिवाइव करने की योजना है लेकिन इस समय इंफ्रा कंपनियों के मुकाबले कंस्ट्रक्शन कंपनियों में निवेश करना ज्यादा बेहतर हो सकता है। इंफ्रा क्षेत्र में ऐसेट या हिस्सेदारी बेचने वाली कंपनियों में चुनिंदा निवेश करने की सलाह है। इसके अलावा आईटी, फार्मा कंपनियों में न्यूट्रल से ओवरवेट नजरिया रखने की सलाह है। साथ ही एफएमसीजी क्षेत्र में सस्ते वैल्यूएशन वाली कंपनियों के शेयरों में निवेश बनाए रखने की सलाह है।

इसी बीच विश्व बैंक ने भारत के बिजली क्षेत्र की स्थिति खराब बताई है। हाल की एक रिपोर्ट, जिसमें वितरण कंपनियों, राज्य बिजली नियामकों और केंद्रीय सार्वजनिक इकाइयों (पीएसयू) को शामिल किया गया है, में बिजली क्षेत्र को लेकर कई तरह की चिंता जाहिर की गई है। 'मोर पावर टु इंडिया: द चैलेंज आफ डिस्ट्रीब्यूशन' नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली अधिनियम 2003 के कई प्रमुख सुधारों को अब तक लागू नहीं किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों के हस्तक्षेप के चलते वितरण के  क्षेत्र का निगमीकरण नहीं हो सका, नियामकों ने बिजली इकाइयों का प्रदर्शन सुधारने पर जोर नहीं दिया, बिजली वितरण कंपनियों के नकदी प्रवाह की समस्याएं बढ़ती गईं। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इस क्षेत्र का कुल घाटा 2011 में बढ़कर 1.46 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो 2003 के घाटे की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। 2003 से संचित हानि सीएजीआर का 9 प्रतिशत हो गया।' 2011 में इस क्षेत्र का कुल कर्ज बढ़कर 3.5 करोड़ रुपये हो गया, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत है।

विश्व बैंक के मुताबिक बिजली इकाइयों की वित्तीय स्थिति खराब होने की प्रमुख वजह है कि वितरण कंपनियों पर कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में लागत से कम दाम पर बिजली देने का दबाव है, जो उन्हें सब्सिडी के रूप में वापस मिलता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'वर्तमान में राज्य सरकारों ने वितरण कंपनियों को 37 प्रतिशत सब्सिडी राशि का भुगतान नहीं किया है। कुल दी गई सब्सिडी और वितरण कंपनियों को मिली राशि का अंतर 2003 से 2011 के बीच बढ़कर 46,600 करोड़ रुपये हो गया है।'


ब्रेष्ट की यह कविता नयी दुनिया के निर्माण का सपना देखने और उसे ज़मीन पर उतारने में अपना खून देनेवाले हर शहीद के नाम है. देखना और पूछना ज़रूरी है कि क्यों हर वह आदमी जो मनुष्य की तरह जीना चाहता है, आज जानवरों की तरह जिबह किया जा रहा है. क्या हमें मनुष्यता और नयी दुनिया की कोई ज़रूरत नहीं रही? ऐसा हमारे काबिल मित्र रियाज का कहना है।


बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता – हम राज करें, तुम राम भजो!

अल-ज़जीरा की वेबसाइट से साभार

खाने की टेबुल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
‘सन्तोष करो, सन्तोष करो!’

उनके धन्‍धों की ख़ातिर
हम पेट काटकर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जायें –
‘त्याग करो, भई त्याग करो!’

मोटी-मोटी तोंदों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते –
‘सपने देखो, धीर धरो!’

बेड़ा ग़र्क़ देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं -
‘तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो!’

(इस कविता का मनबहकी लाल ने अपने निराले अन्दाल में अनुवाद किया है।)

परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्‍तक ‘कहे मनबहकी खरी-खरी’ से

बजट से निवेशकों का भरोसा लौटाने की होगी कोशिश
नयनिमा बसु और इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली June 23, 2014

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और वित्त एवं कंपनी मामलों की राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन कहती हैं कि 2014-15 के लिए बजट में ऐसे प्रावधान होंगे, जिनसे कारोबार करना आसान हो जाएगा। नयनिमा बसु और इंदिवजल धस्माना से बातचीत में सीतारामन ने बताया कि सरकार मौजूदा भूमि अधिग्रहण अधिनियम की समीक्षा कर इसे किसानों व उद्योगों, दोनों के लिए ही फायदेमंद बनाने की दिशा में काम कर रही है। मुख्य अंश :
बजट ऐसे समय में तैयार हो रहा है, जब आर्थिक वृद्घि को बढ़ावे की जरूरत है। हालांकि कर-जीडीपी वृद्घि दर लक्ष्य के अनुरूप नहीं रही है। इनमें संतुलन कैसे बिठाया जाएगा?
यह बजट बताएगा कि हम देश में कारोबार को आसान करना चाहते हैं और इससे अर्थव्यवस्था में निवेशकों का भरोसा लौटेगा। कराधान की सामान्य और आसान व्यवस्था लाई जाएगी। कई उद्योगपतियों का कहना है कि भारत में मुश्किलों की वजह से वे अपने कारोबार विदेश ले गए। हम खुलासे और जांच को आसान बनाएंगे। हमें उम्मीद है कि इससे उन्हें यहां कारोबार करने का भरोसा मिलेगा। कई कारोबारी कंपनी अधिनियम को भी प्रतिकूल बता रहे हैं।
तो क्या सरकार उद्योग जगत से मिली प्रतिक्रिया के मुताबिक कंपनी अधिनियम में बदलाव करेगी?
हम उद्योग जगत की मुश्किलों को गहराई तक समझना चाहते हैं। मुश्किलें दूर करने के लिए प्रावधान बदले जाएं या कानून में संशोधन किया जाए, यह कंपनी मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट आने के बाद ही तय होगा।
लगता है कि नई सरकार रक्षा क्षेत्र में भी एफडीआई की इच्छुक है और इस बारे में कैबिनेट प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई है। इस पर फैसला कब तक होगा?
बातचीत शुरू हो गई है। हमने कुछ तय नहीं किया है। हम सभी से बात करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान रक्षा क्षेत्र को काफी प्रमुखता दी थी। हम अपने यहां हथियारों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं या आधुनिक उपकरण चाहते हैं तो हमें निवेश की जरूरत होगी। रक्षा में आयात पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। इसलिए हम देख रहे हैं कि एफडीआई के जरिये सिर्फ निवेश आना चाहिए या फिर तकनीक भी।
रेलवे परियोजनाओं, ई-कॉमर्स और रियल एस्टेट में एफडीआई पर फैसला कब तक हो सकता है?
इस पर नए सिरे से बात शुरू हुई है। हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि निवेश जरूरी क्षमता के साथ आए।  कुछ लोगों का कहना है कि यह बहुब्रांड खुदरा में पीछे के दरवाजे से एफडीआई को न्योता देने जैसा ही है। लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला वित्त मंत्री ही करेंगे।
क्या सरकार ने बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई को ठंडे बस्ते में डाल दिया है?
भाजपा के लिए यह कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रहा। हम बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई के पक्ष में नहीं हैं। इसी मुद्दे पर हमें वोट मिले हैं और हम इस पर कायम हैं। यह कार्यपालिका का आदेश था, जिसे देश पर थोपा गया है। संप्रग सरकार ने तर्क दिया कि उसे इसके लिए संसद की हरी झंडी की जरूरत नहीं थी। उस समय भी इस पर काफी विवाद हुआ था। कांग्रेस की राज्य सरकारें भी इसके पक्ष में नहीं थीं। हम देखेंगे कि इसका क्या करना है।
क्या आप भूमि अधिग्रहण अधिनियम को निवेशकों के लिए और अधिक लाभकारी बनाने के लिहाज से इसकी समीक्षा करने की योजना बना रही हैं?
हम निश्चित रूप से ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान दे रहे हैं जो हमारे लिए मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। अगर कोई मौजूदा कानून के मुताबिक चलता है तो ये उद्योग के लिहाज से बड़ी बाधाओं के रूप में सामने आ सकती हैं। इसलिए हम कुछ प्रस्तावों पर अलग तरह से विचार करने की दिशा में कोशिश कर रहे हैं। हम सभी तरह के सवाल उठा रहे हैं क्योंकि हमें अर्थव्यवस्था को आगे ले जाना है और साथ ही उन लोगों को न्याय दिलाना भी है जो जमीन के इन टुकड़ों से जुड़े हुए हैं।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को नए सिरे से बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री होने के साथ ही आप राजस्व विभाग का जिम्मा भी संभाल रही हैं, ऐसे आपके पास सेज के मैट और डीडीटी को लेकर विरोधाभासी मांगों के प्रस्ताव हैं, आप इस मसले को कैसे सुलझाने की कोशिश कर रही हैं?
दरअसल हम इस मामले का विश्लेषण कर रहे हैं, हमने सेज को कोई नई तेजी देने की कोशिश नहीं की है। हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों सेज उतने लाभदायक साबित नहीं हो रहे हैं जितनी कि हमें उम्मीद थी। इसलिए इसे समीक्षा ही समझना बेहतर है कि क्या है जो इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहा, क्यों यह उचित ढंग से प्रभावी नहीं हो पा रहा है। जहां तक मैट और डीडीटी की बात है, हमें इन विषयों पर काफी जानकारी मिली है। राजस्व की दृष्टिï से हमें यह देखना होगा कि सेज की मदद से किस तरह कमाई बढ़ाई जा सकती है। मुझे दोनों के बीच एक संतुलन तलाशना होगा।
क्या आयकर कानून में पिछली तारीख से कर लगाने संबंधी संशोधन इस साल वित्त विधेयक में वापस से आएंगे? यदि हां तो क्या सरकार वोडाफोन के साथ मध्यस्थता करके मामले का निपटारा नहीं करेगी और कर मांग नोटिस को वापस लेगी?
जहां तक बात वोडाफोन की है तो इस मामले के लिए एक मध्यस्थ तय किया जा चुका है। इसलिए मेरे लिए इस विषय पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। पुरानी तरीख से कर लगाने के बारे में वित्त मंत्री फैसला लेते हैं यह देखना होगा।
क्या आप पाकिस्तान के साथ व्यापार की सामान्य स्थिति की बहाली चाहती हैं? क्या दोनों देशों के बीच व्यापार पटरी पर है क्योंकि सीमापार से गोलीबारी की खबरें आ रही हैं?
हम उनके साथ जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान सीमा के रास्ते ज्यादा उत्पादों को लाना चाहता है। पाकिस्तानी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में काफी संभावनाएं हैं और भारत के उत्पाद पाकिस्तान के बाजारों में भी खूब बिकते हैं। दोनों देशों के लिए अपार संभावनाएं इंतजार कर रही हैं और इसके लिए काफी चीजों पर काम करना होगा। यह दोनों के लिए फायदे का सौदा है।
क्या इराक के संकट का तेल आयात खर्च पर कोई असर पड़ेगा?
पेट्रोलियम मंत्रालय ने कहा है कि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
अमेरिका के विशेष कानून के तहत क्या आप निर्धारित समीक्षा से ज्यादा की अनुमति देंगी? क्या यह मामला व्यापार नीति मंच की अगली बैठक में उठेगा?
हम इस मामले में साफ बताना चाहेंगे कि हमारा बौद्घिक संपदा कानून डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत है और हमको अपने राष्ट्रीय हित बरकरार रखने हैं। हम उनको बताएंगे कि हर देश को अपना बौद्घिक कानून संरक्षित करने की इजाजत हैं।
खबर है कि स्विटजरलैंड उसके बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम बताने को तैयार है। क्या सरकार को इस बारे में कोई सूचना मिली?
यह सब ऐसे समय में हुआ है जब हमारे मंत्रिमंडल का पहला फैसला कालाधन वापस लाने के लिए विशेष जांच दल के गठन का किया था। यह सबकुछ एक वरदान की तरह है।
क्या यह सच है कि आप मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर सुस्ती बरतने जा रहे हैं? यूरोपीय संघ जैसे बड़े मामलों का क्या होगा?
हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि मौजूदा समझौतों को कौन सी चीजें नुकसान पहुंचा रही है। लेकिन इसे लेकर देरी नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि इन पर तेजी बरतने की जरूरत है। लेकिन हम तब तक किसी नए एफटीए की दिशा में नहीं बढ़ सकते जब तक यह समझ नहीं आ जाए कि मौजूदा समझौतों को किस चीज से दिक्कत है। हमने आयात का पर्याप्त फायदा नहीं उठाया। हमें अपनी सेवाओं और परियोजनाओं के निर्यात के लिए बाजार नहीं मिल रहा है। इसलिए नए समझौते की तरफ बढऩे से पहले विश्लेषण की जरूरत है। हम एक-एक करके सभी का विश्लेषण कर रहे हैं।


un 25 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Pension Funds Heading to Join Dalal Street Party
VIKAS DHOOT
NEW DELHI


Pension, gratuity & PFs may get to invest big chunk in equities and MFs
The finance ministry proposes to allow pension, gratuity and provident funds to invest 30% of their corpus into equity, and up to 40% in Sebi-regulated debt mutual funds, providing additional liquidity to the capital markets.
The government had first opened up the equity investment window for retirement funds in 2005 by allowing a 5% allocation to stock markets and had expanded this window to 15% in 2008. At present, around Rs 10 lakh crore is parked in retirement funds in the country and, theoretically, the decision to hike the limit to 30% will make it possible for an additional Rs 1,50,000 crore to be invested in the capital markets.
The actual figure will however be less as the Employees’ Provident Fund Organisation (EPFO), which runs the country’s largest retirement fund, has so far not in
vested in equities.
According to the finance ministry's proposal, half of the funds that are pumped into equities can be invested in shares of firms that are traded on the futures and options segment of the bourses and equity-linked savings schemes of mutual funds. A new investment category has been created to allow another 15% of the corpus to be invested in Exchange Traded Funds or index funds that track the two leading in dices in the country ­ the NSE Nifty Fifty and the BSE Sensex.
The new norms for pension fund investments, could also give a fillip to the cash-strapped infrastructure sector as they permit investments in infrastructure debt funds and asset-backed securities. Infrastructure projects in the country have suffered for the want of long-term financing.




Jun 25 2014 : The Economic Times (Kolkata)
countdown to the BUDGET - Foreign Stock Trade may not Attract Capital Gains Tax
DEEPSHIKHA SIKARWAR
NEW DELHI


The government is looking to encourage Indian companies to raise funds through the sale of depositary receipts overseas by freeing trade in such securities from capital gains tax in the forthcoming budget, which is set to be unveiled on July 10. Overseas investors who buy and sell stock of companies that are only listed abroad won’t be liable for the levy in India once this is implemented, said a senior government official.
“The income-tax law would be amended to accommodate the changes in the American and global depository receipts scheme,” the official said. The move will require an amendment in Section 115 AC of the Income-tax Act.
Separately, the government is also expected to amend the law to keep share transfers over stock exchanges outside the purview of taxation in the country. The move could provide a respite to overseas transactions such as Bain Capital’s acquisition of Genpact carried out on the New York Stock Exchange. The retrospective amendment making indirect transfers taxable here had raised the spectre of taxation over such deals.
The amendment to Section 9 of the Income-tax Act in 2012 said a foreign asset would deemed to be located in India if it derives, directly or indirectly, its value substantially from the asset located in India, implying that its transfer would be subject to tax.
The provision did not spell out what ‘substantially’ meant as also ‘keep transfers on overseas stock exchanges out of the tax ambit’.
The new Narendra Modiled government is committed to a taxpayer-friendly regime and is expected to define both these elements.
The department of economic affairs had been pushing for changes in the ADR/ GDR scheme since it was announced in September 2013 but this ran into the require
ment for a change in the law.
Overseas investors may have been wary of such instruments given the retrospective changes in tax laws that were applied to acquisitions of Indian assets by overseas entities, such as the Vodafone-Hutchison deal.
Lack of clarity on taxation has held back companies from pursuing overseas listings, which are seen as an attractive option for companies from sectors such as mining that are better understood in overseas markets.
Moreover, the government has accepted the MS Sahoo panel’s recommendations on overhauling the ADR/ GDR scheme. The panel had suggested allowing the issuance of depository receipts against any underlying securitie —debt as well as equity—by listed and unlisted companies to attract long-term capital flows into the country.
It had also favoured level-1, level-2 and unsponsored ADRs, the most liberal form of such securities in terms of regulations, and providing easier access to markets.
The government is also expected to extend the scheme that was launched on a pilot basis for two more years along with other changes in the forthcoming budget.
Experts said clarity on taxation would help the scheme become popular. “The scheme should be attractive enough to draw international investors to issuances by these companies,” said Sunil Jain, partner, J Sagar Associates. “Clarity on taxation would help their case.” Such a move would also help companies diversify their investor base easily.
Jun 25 2014 : The Economic Times (Kolkata)
countdown to the BUDGET - Govt Plans Trust Route to Boost Infrastructure Sector
ARUN KUMAR
NEW DELHI


The government is looking to create a new investment vehicle known as the infrastructure business trust to help cash-starved infrastructure developers raise long-term capital at competitive rates.
The finance ministry is considering a range of tax incentives for such trusts in the budget that's to be announced on July 10, in line with its promise to create a framework of fast-track, investmentfriendly and predictable public private partnerships (PPPs) to build large-scale projects that are of vital importance for India to compete in global markets.
Though assets delivered through the PPP model and available for financing through securitisation have risen, Indian infrastructure firms are hard pressed with the development of existing projects delayed and the attractiveness of new projects diminishing for private sector funds and strategic operators.
“In order to provide a robust funding mechanism to the cashstarved sector, the government and market regulator Sebi (Securities & Exchange Board of India) will facilitate the securitisation of projects assets through infrastructure business trusts,” said a person familiar with the development.
To raise long-term capital for the much-needed sector, the government will incentivise the creation of such trusts, so that investors will have a lower tax burden apart from avoiding multiple taxation at different levels. Infrastructure projects are now funded by bank loans, resulting in asset-liability mismatches in the banking sector.
The government has discussed the plans with senior officials of Sebi, Central Board of Direct Taxes and department of economic
affairs to finalise the incentives.
An infrastructure business trust will be set up as a trust and registered with the market regulator.
The regulator has proposed two categories of trusts. Category I trusts can raise funds through private placements from institutional investors only. These trusts can invest in multiple projects (at least two) that include those under construction as well as commercially-operational ones.
The category II trust can raise funds from both local and foreign investors. However, it can invest only in commercially-operational projects. It can invest in a minimum of four such projects.
The proposed provisions will provide for the deferral of longterm capital gains tax on the exchange of shares of special purpose vehicles that own the infrastructure projects with the unit of the trust in the case of the trust's sponsor.
However, capital gains arising from the disposal of the units by the sponsor would be subject to tax at normal rates.
The units of the trust (referred to as InvITs by Sebi) may be treated at par with equity shares, so as to attract the current benefit available under Section 10 (38) of the Income-tax Act. This provides a preferential tax rate with longterm capital gains being exempt from tax and short-term capital gains being levied at 15%. This implies that unitholders will pay securities transaction tax at the time of transfer of units to another unitholder.
The trust will also be exempt from taxation of income earned in line with existing exemption for venture capital funds available under Section 10(23FB). In the case of resident investors in InvITs, withholding tax would apply .
In the case of non-residents, withholding tax on interest income from both investors as well as lenders of money to the trust may continue to be provided at the current level of 5% on the lines of concessional rates applicable to external commercial borrowings.











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