Saturday, April 5, 2014

बहुलतावादी बनारसीपन को बचाने के लिए पाती

हम जातिवाद के खिलाफ है, ऊँची जाति में पैदा लोगों के नहीं
हम साम्प्रदायिकता व साम्प्रदायिक फासीवाद के खिलाफ है, धर्म के खिलाफ नहीं

साथियों,
बनारस/वाराणसी के संसदीय सीट से जहां एक तरफ नरेन्द्र मोदी और दूसरी तरफ अरविन्द केजरीवाल और वहीं किसी राबिन हुड डॉन के लड़ने की चर्चा व अफवाहें फैली हुई है। आज हमें गालिब की बनारस के बारे में लिखी निम्नलिखित पंक्तियाँ याद आ रही हैः
“त आलल्ला बनारस चश्मे बद्दूर,  बहिश्ते खुर्रमो फि़रदौसे मासूर
इबातत ख़ानए नाकूसियाँ अस्त,  हमाना काब-ए- हिन्दोस्तां अस्त”
(हे परमात्मा बनारस को बुरी दृष्टि से दुर रखना, क्योकि यह आनन्दयम स्वर्ग है। यह घण्टा बजाने वालों अर्थात् हिन्दुओं की पुजा का स्थान है। यानी यही हिन्दोस्तान का काबा है।)
एक तरफ राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के समर्थन में नरेन्द्र मोदी लड़ रहे है, वही दूसरी तरफ आधुनिक मुसोलिनी अरविन्द केजरीवाल है। जनता को मुर्ख बनाकर मुसोलिनी व हिटलर कब मिल जायें, इसका पता नहीं। खाप पंचायतों को समर्थन करने वाले व आरक्षण विरोधी संगठन (यूथ फॉर इक्वलिटी) के आरक्षण विरोधी बैठक में हिस्सा लेने वाले अरविन्द केजरीवाल के सन्दर्भ में इटली में घटित 22-29 अक्टूबर, 1922 की घटना का जिक्र करना बहुत प्रासंगिक है। इटली की सिविल सोसाइटी के लगभग तीस हजार लोगों ने रोम की सड़को और संसद को घेर लिया। इन्हें इटली के उद्योगपतियों का समर्थन था। इसके बाद वहां के राजा ने चुनी हुई सरकार की जगह मुसोलिनी को सत्ता सौंप दी। यह यूरोप के अधिनायक तंत्र के विस्तार की दिशा में निर्णायक कदम था। इसकी परिणति दूसरे विश्व युद्ध में हुई, जिसमें 6 करोड़ लोग मारे गये। तो क्या आप भी भारत में ऐसा करने के पक्ष में है? ये तो महात्मा गांधी जी का रास्ता नहीं है। ये तो महात्मा गांधी और उनके मूल्यों से गद्दारी होगी। फिर आम पार्टी व अरविन्द केजरीवाल दिल्ली से करीब पर हुए मुजफ्फरनगर दंगे पर कुछ नही बोले। क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने अमरीकी यात्रा के दौरान खुद को आर0एस0एस0 का “स्वयं सेवक” घोषित किया। उसी के कुछ दिनों बाद भारत के गृहमंत्री रहते हुए लाल कृष्ण आडवानी ने आर0एस0एस0 को भाजपा के लिए “नाभी नाल” की संज्ञा दी, जिससे उनका स्पष्ट मतलब था कि आर0एस0एस0 उनके लिए वह सब खुराक उपलब्ध कराती है, जो एक माँ अपने पेट में पल रहे बच्चें को जिंदा रखने के लिए ष्नाभी नालष् द्वारा पहुँचाती है। 

आर0एस0एस0 का पूरा नाम राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ है। सन् 1925 में इसकी स्थापना डा0 हेडगेवार ने की। इसकी विचाराधारा ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व पर आधारित है और यह हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। हिन्दू राष्ट्र का अर्थ है मनुस्मृति पर आधारित व्यवस्था लाना। ऋग्वेद के पुरुषसुक्त से शुरु हूई वर्णव्यवस्था को मनुस्मृति ने ही कानूनी आधार दिया। इसी में वेद का उच्चारण करने पर शुद्र की जीभ काट लेने एवं वेद का उच्चारण सुनने पर कान में पिघला हुआ शीशा डालने का नियम था। डा0 अम्बेडकर ने मनुस्मृति को जलाया, जबकि गोलवकर (आर0एस0एस0  के दूसरे सर संघ चालक) ने इस पुस्तक की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। दिसम्बर 1992 को आर0एस0एस0 की शाखा विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) की धर्म संसद में यह संकल्प पारित किया गया कि भारतीय संविधान गैर-हिन्दू है। इसे हिन्दू संविधान में बदला जाए। संघ परिवार का कहना है कि मनुस्मृति में सबके लिए न्याय है। जबकि डा0 अम्बेडकर ने कहा, “हिन्दू न राष्ट्र है और न समाज। यदि हिन्दू राज कायम हो गया, तो यह देश के लिए सबसे विपत्ति होगी। हिन्दू जो चाहे कहे, हिन्दूवाद स्वतंत्रता के लिए खतरा है। हिन्दूराज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए|”

नेपाल में हिन्दूसभा राजशाही का समर्थन कर रही है। मण्डल कमीशन आया तो भाजपा कमण्डल/राम मंदिर का मुद्दा ले आयी।
आर0एस0एस0 पूरी तरह पुरुष प्रधान संगठन है। दबाव के बाद अलग से 1936 में राष्ट्र सेविका समिति बनाया गया। इस सम्बंध में मनुस्मृति से बातें ली गयी। जिसमें गर्भाशय की तुलना खेत से की गयी। पुरुष बीज बोता है इसलिए फसल पर उसका हक है। स्त्रियाँ पराश्रित रहती है।

गोलवरकर के अनुसार असमानता ही सत्य है। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि जो स्त्रियां पुरुष बनना चाहती है वे उपहास की पात्र है। (हिन्दी साप्ताहिक धर्मयुग के साथ एक इंटरव्यू में 1990)

आर0एस0एस0 जिस मनुस्मृति की तारीफ करता है, उसमें स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण पर रोक है। यही मनुस्मृति में कहा गया है कि स्त्रियाँ पुरुषों की संपत्ति है, अतः वे केवल उनकी सेवा करें। भाजपा की वरिष्ठ नेता स्व0 विजयराजे सिधिंया ने सती-विरोधी कानून के खिलाफ मार्च का नेतृत्व किया और कहा कि “सती होना हिन्दू स्त्रियों का मूलभूत अधिकार है, क्योंकि यह हमारे अतीत के गौरव और संस्कृति की सुरक्षा है”| जबकि दलित आंदोलन की सावित्री बाई फूले ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उनके पहले बैच में ऊँची जाति की लड़कियों की संख्या अधिक थी। 
लगभग 2000 कारसेविकाओं ने मस्जिद को गिराये जाने में कारसेवकों की मदद की। महिलाओं ने गुजरात दंगों में भाग लिया एवं मुम्बई में पुरुष भाइयों से साम्प्रदायिक हिंसा में भाग लेने का आग्रह किया। हमें मनुवाद व साम्प्रदायिकता से स्त्रियों को भी मुक्त करना होगा।
आर0एस0एस0 की नींव सावरकर के काम से पड़ी। सावरकर ने 1923 में हिन्दू महासभा की राजनीति का मार्गदर्शन किया। इससे पहले उन्होने इंग्लैण्ड में “फ्री इंडियन सोसायटी” भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को खत्म करने को बनाया, उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन करावास की सजा दी गयी। 1920 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उनकी बगैर शर्त रिहाई की मांग कर रही थी, किन्तु सावरकर ने न जाने क्यूँ लिखित बयान लिखकर माफी मांगी। उन्होंने लिखा मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझपर ठीक से मुकदमा चलाया गया और सही सजा दी गयी। बीते दिनों में मैने जो हिंसा का मार्ग अपनाया था अब मैं उसकी दिल से भत्र्सना करता हूँ। अब ये मेरा कर्तव्य है कि मैं अपनी पूरी ताकत के साथ संविधान (ब्रिटिश संविधान ही समझे) का पालन करुँगा। यदि मौका मिला तो मै सुधारो को सफल बनाउँगा (सावरकर द्वारा ब्रिटिश प्राधिकारियों को भेजे गये पत्र का प्रतिरुप फ्रन्ट लाइन 7 अप्रैल, 1995 पृ0सं0 94) सावरकर ने जिन सुधारों की बात की है वे 1919 माउंटेव्यू चैम्सफोर्ड प्रस्ताव जिसने राष्ट्रवादी आन्दोलनों की मांग को स्वीकार नहीं किया। इसके बाद सावरकर हिन्दू की राजनीति करके फूँट डालने का काम करते रहे, किन्तु अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नहीं रहे। कुछ समय के लिए डा0 हेडगेवार सत्याग्रह आन्दोलन से जुड़े रहे, थोड़े समय के लिए जेल गये। लेकिन कुल मिलाकर राष्ट्रीय आजादी के संघर्ष में आर0एस0एस0 ने कुछ नहीं किया। सन् 1931 में डा0 हेडगेवार ने स्वयं को अंग्रेजी राज के खिलाफ के संघर्ष से अलग कर लिया। गोलवरकर ने लिखा है कि “ब्रिटिश विरोधियों को देशभक्त व राष्ट्रवादी कहा जाता है। इस प्रतिक्रियावादी विचार ने पूरे राष्ट्रीय आन्दोलन, इसके नेताओं और आम जनता पर विनाशकारी प्रभाव डाला है” (गोलवरकर 1966)। विदित हो भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आर0एस0एस0 पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसे देश के लिए खतरा बताया।
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने लेख “दि संघ इज माई सोल” में उन्होंने कहा है कि “जब मैंने हिन्दू जीवन तन मन से अपना लिया, उस समय दसवीं कक्षा का छात्र था। 1947 तक मैंने शाखा स्तर पर आर0एस0एस0 के लिए कार्य किया।..... मैंने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और जेल गया। उस समय मैं इण्टरमीडिएट परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा था। मुझे आगरा जिले में मेरे गाँव बटेश्वर से गिरफ्तार किया गया। श्इस दावे की छानबीन की गयी और निष्कर्ष 20 फरवरी, 1998 की फ्रन्ट लाइन में छपा है। पता चला कि अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्र लिखकर माफी माँगी और रिहा हुए। उन्होने लिखा “मै अपने भाई के साथ भीड़ के साथ-साथ चल रहा था। मैने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। मैने सरकारी भवनों को गिराने में कोई सहायता नहीं की। जबकि समाजवादी भारत का सपना सजाये युवा शहीद भगत सिंह 23 वर्ष की उम्र में हसंते हुए फाँसी के फन्दे पर “इंकलाब जिन्दाबाद व उपनिवेशवाद मुर्दाबाद” को नारा लगाते हुए चढ़ गये। लेकिन वाजपेयी ने अंगे्रजो से माफी मांगी।
वहीं दूसरी तरफ सल्तनत-ए-मुगलिया के आखिरी चिराग़ बहादुर शाह ज़फर ने लिखा- “गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते-लन्दन तक चलेगी तेग़ हिन्दुस्तान की”। उपनिवेशवाद को समर्थन देने वाले एवं कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले लोग बनारस के बहुलतावाद  के साथ हिन्दू धर्म के वास्तविक मूल्यों के भी विरोधी है।
बनारस बहुलतावाद का वह पवित्र शहर है, जहां बुद्ध ने 528 ई0 पूर्व अपना पहला उपदेश (धर्मचक्र प्रवर्तन) सारनाथ में दिया। 1507 में शिवरात्रि के दिन गुरुनानक देव जी बनारस आये और सिख धर्म के मार्ग दर्शन के लिये एक नई दिशा दिया। जैन धर्म के तीर्थकर श्री पाश्र्वनाथ जी यहीं काशी में पैदा हुए। ऐनी बेसेन्ट ने बनारस को ही अपना कार्यस्थल बनाया। वहीं मौलाना अल्वी द्वारा लायी गयी साड़ी उद्योग साझा संस्कृति का एक प्रतीक बना। नजीर बनारसी की कविताओं को बिना पढ़े बनारस को आप नही समझ सकते। शीतला माँ का मंदिर हो या बाबा विश्वनाथ हो उन्हें हमेशा बनारस के पुत्र उस्ताद बिस्मिल्ला खां की शहनाई याद रहेगी। वहीं बनारस बहाई धर्म क्रिश्चियन, यहूदी सभी धर्मों का केन्द्र होते हुए जातिवाद और धार्मिक कट्टवाद के खिलाफ संत परम्परा के महान संत सदगुरु कबीर, संत रैदास व संत सेन नाई की जन्म स्थली व कर्म भूमि है। जहां दुनिया को बनारस से बहुलतावाद सीखना चाहिए। वहीं ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समर्थक व भारत में साम्प्र्रदायिक फासीवाद के जनक आर0एस0एस0 ने बनारस व हिन्दू धर्म के बहुलतावाद के लिए संकट पैदा कर दिया है।
समन्वयवाद के प्रतीक तुलसीदास द्वारा लिखे “लाल देह, लाली ................. बज्र देव, दानव दले,” से उलटा हिन्दू धर्म के लाल झण्डे को भी आर0एस0एस0 केसरिया करने पर तूली है। हिटलर व मुसोलिनी का समर्थन करने वालों को, यह पता होना चाहिए कि हिटलर के युद्ध के कारण जर्मनी पूर्व रुपेण तहस-नहस हो गया। जिसके कारण जर्मनी के लोग हिटलर को किसी भी रुप में पसंद नहीं करते है और आज हिटलर विरोधी लोगों ने फिर से जर्मनी को खड़ा किया और सशक्त बनाया, जो कि हिटलर के कारण तबाह व बर्बाद हो गया था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जुर्माना देने के कारण जर्मनी में गरीबी रही और गरीबी के कारण सामान्य बुद्धि वाले हिटलर ने कट्टरपंथ को अपना कर जर्मनी और दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया। जिसके बाद जर्मनी पर फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन व सोवियत संघ का कब्जा हो गया। ब्रिटेन, जर्मनी व अमेरिका ने जर्मनी पर कोई जुर्माना नही लगाया, बल्कि मदद की। जिसके कारण आज कल आधुनिक जर्मनी खड़ा हुआ और जर्मनी किसी तीसरे युद्ध में नहीं गया।
हम बनारस व अपने देश को बर्बाद नही होने देगें। जहां मार्क ट्वेन ने बनारस को अतुल्नीय व महान कहा, वही कुछ नेता अपने आप को बनारस से भी महान साबित करने की कोशिश कर रहे। यह बात स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारतीय दर्शन में जहां जातिवाद का भी दर्शन रहा, तो वहीं जातिवाद के खिलाफ श्रमण संस्कृति भी रही। ईश्वरवादी, अनीश्वरवादी, सांख्य, बौद्ध, वैशेषिक, जैन, लोकायत, मीमांसा, वेदान्त आदि अनेक तरह की विचार धाराएं भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहीं। श्रमण संस्कृति की अगली कड़ी के रुप को इस्लाम व ईसाई दर्शन भारत में अपना स्थान बनाया। जातिवाद के खिलाफ लड़ने वाले दलित और जातिवाद के खिलाफ ऊँची जाति में पैदा लोगों की एकता, साम्प्रादायिक फासीवाद के खिलाफ अल्पसंख्यक व विभिन्न धर्मों की एकता व नवउदारवाद के खिलाफ गरीबों की एकता को एक साथ जोड़ते हुए बनारस में हिटलर व मुसलोनी के वंशजों को शिकस्त दिया जाये। यही बनारस जैसे बहुलतावाद शहर के प्रति वास्तविक समर्पण होगा।

अगर देश की सुरक्षा ऐसे ही होती है,
कि हर हड़ताल को दबा कर अमन को रंग चढ़ता है,
कि वीरगति बस सीमाओं पर मर कर परवान चढ़ती है,
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलता है,
अफल हूकुमत के कुंए पर जुत कर ही धरती सीचेंगी,
मेहनत को राजकमल के दरवाजे पर दस्तक ही बनना है,
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा हैं।
(आतंकवादी कट्टरवाद के शिकार हुए कवि अवतार सिंह पाश)



आपके अपने -


लेनिन रघुवंशी          श्रुति नागवंशी             वल्लभाचार्य पाण्डेय            
डॉ0 मोहम्मद आरिफ   जै कुमार मिश्रा
सम्पर्क:-
सा 4/2ए, दौलतपुर वाराणसी – 221002 (उ0प्र0)


यहाँ हम मंदिर-मसजिद के कोनों-अँतरों में
कोई पवित्र पुण्यफल नहीं, विध्यंसक विस्फोटक
सूँघते-ढूँढते फिर रहे हैं
वहाँ वे
खुलेआम भर रहे है लोगों के मस्तिष्क में
विध्वंसबीज विस्फोटक विचार
अभी-अभी आनी है होली
लाल चेहरे और हरी हथेलियाँ लिये
घूमते बच्चों के समूहों पर रीझे या खीजे
हमने कभी सोचा है, उनके हाथों की रंग-पिचकारियोँ
पिस्तौल के रूपाकार में क्यों बदल गई है?
हम कभी हुए है चिंतित की दीपावली और शबे-बारात के शिशु पटाखे
दहलाते बमबच्चों में क्यों बदल गए है?
और आज
महाशिवरात्रि और ईद की करीबी से
सबकी साँस रुकी है
जबकि ईद का कमसिन चाँद क्यों न हो सहर्ष शिरोधार्य
बालचंद्र ही नहीं, शिवशंकर का भालचंद्र जो
वे कहते हैं, अयोध्या के बाद काशी की बारी है
धर्म-संसद में पारित हुआ है प्रस्ताव
मंदिर के धड़ पर रखा है जो मसजिद का माथा
उसे कलम करने की तैयारी है
लेकिन क्यों?
इतिहास की भूल सुधारने में
भूल का इतिहास रचना क्यों जरूरी हो?
नरसिंहावतार के आगे नतमस्तक
गजमुख गणेश के पूजक
जनों के लिए निंदनीय क्यों हो वह, वंदनीय क्यों नहीं?
यदि जमीनस्थ जड़ो में
शिव-स्तोत्र के श्लोक और कुरआन की आयतें
प्यार से अझुराएँ
तो भला क्यों
हर हर महादेव और अल्ला हो अकबर के नारे
प्रकंपित आसमान में टकराएँ।

(“गंगातचट” की “समरकांत उवाच” शीर्षक कविता का एक अंश)

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