Monday, March 24, 2014

बेगूसरायः अतीत और वर्तमान
स्व. अरूण प्रकाश का यह साक्षात्कार उस समय सुभाष गौतम ने लिया था जब वे गंभीर बीमार चल रहे थे.    
बेगूसराय की ऊर्जा अदम्य है और यह ऊर्जा समूदाय के विभिन्न प्रकारों में देखी जा सकती थी। बेगूसराय के वर्तमान या अतीत पर गौर करना जरूरी है। गौर करने से पहले बेगूसराय के दूरस्त अतीत पर भी गौर करना जरूरी है क्यों कि वह दूरस्थ अतीत  भविष्य और वर्तमान का ही नहीं, बल्कि भविष्य की ओर संकेत करता है। जब से पाल वंश का शासन बेगूसराय में हुआ तब से पाल वंश का असर वेगूसराय पर क्या पड़ा यह भी जाना बहुत जरूरी है। ध्यान रहे पाल वंश दलित और दमित का रहा है बहुधा यह माना जाता है कि दमित हमेशा दलित है। यह पाल वंश हमेशा दमित रहने वाला वंश नहीं है। यहां पाल वंश का वाकायदा पांच सौ वर्षों का शासन रहा है। 
हम यदि किलाओं के इतिहास पर गौर करे तो पता चलता है कि बेगुसराय में ही नहीं पूरे मिथिला में एक किला था। बाकी छोटे-छोटे किले मिलीट्री पोस्ट होते थ,े जिन्हें गढ़ कहा जाता था। ये गढ़ नदियों के किनारे होते थे। नौला गढ़ में पाल वंशीय राजाओं का गढ़ था। हाल ही में बेगूसराय जिले में खुदाई करवाई गयी थी जिसके दौरान पाल वंशीय सिक्के मिले और अन्य कई सामाग्रियां मिलीं जिनसे पाल वंशीय राजाओं शासन के प्रमाण मिलते हैं जो राजकिय गणेश दत्त कालेज में रखा गया है। इन पांच सौ वर्षों में धर्मान्तरण हुआ और बडे़ पैमाने पर हुआ। धर्मान्तरण को लेकर कई धारणाएं हैं एक धारणा तो पासवानों के बारे में है कि वे पहले ब्राह्मण थे लेकिन जब धर्मान्तरण हुआ तो वे बौद्ध बने, वे जब दुबारा वापस हिन्दू धर्म में आये तो उन्हें अछूत घोषित किया गया। पासवानों का हिन्दू धर्म में आना धार्मिक नहीं यह एक राजनीतिक घटना है। इस तरह हम पाते है कि सत्ता के रूप में पूरे मिथिला में इस तरह के गढ़ थे। ये जो गढ़ थे जब पाल वंश के बाद उन पर ब्राहमणवादीयों ने जब कब्जा किया। उसका नतीजा यह हुआ कि अनेक गढ़ों के उपर मंदिर नजर आते हैं। जबकि वे चैत्र थे बौद्धों के चैत्र थे। इतना ही नहीं हर गांव में शक्ति की उपासना जरूरी थी। दूर्गा पूजा, काली पूजा तत्कालीन ब्राह्मण शक्ति की उपासना करते थे। जहां जहां चैत्र देखा वहा वहा शिव मंदिर बना दिया। जहां चैत्र नहीं था वहा दुर्गा या काली की मूर्ति बैठा दी गयी। बेगूसराय की राजनैतिक स्थिति को इस रूप में भी देखा जाना चाहिए कि जिन राजाओं का शासन बाद में हुआ उसने अनिवार्यतः दरभंगा के करनाड वंश के राजाओं का शासन रहा है। इस प्रकार हम देखते है पाल वंश की सत्ता का असर सामाजिक सत्ता में दिखई देता है। इतना ही नहीं सामाजिक सत्ता में वह एक बदलावा का कारण था। वेगूसराय क्षेत्र में 36 नदियां बहतीं हैं जैसे जैसे नदियां बहाव में बदलाव करती रहीं और करवट बदल बदलती रहीं वैसे वैसे चैर मैदानी क्षेत्र बदलता रहा। जहां पानी का जमाव हो जाया करता है कावड जैसा नदियों के बहाव में परिवर्तन हुआ। सबसे बड़ा उदाहरण गंगा जिसने करवट बदलते बदलते पूरा एक ताल क्षेत्र बना दिया था। जिसमें 552 जैसा दियारा इस तरह देखते है कि भूगोल और इतिहास दोनों ही सामाजिक प्रवृत्तियों में प्रभावि बनी आजादी के आंदोलन मे सबसे ज्यादा यहां के युवाओं ने हिस्सा लिया। युवक दल जैसी संस्था बनी गांव हो या देहात हो आज भी पूरा गढ़ नमक बनाने वाला गढ़ है। आज भी नमक बनाने वाला कड़ाह रखा हुआ है। जहा-जहा गढ़ मिलता है वहा सेना के आउट पोस्ट थे। पाल वंश के जमाने से ही यहा एक ऐसी सड़क है जो पश्चिम से प्रवेश करती है और पूरब में निकल जाती है जिसका कुछ अंश राष्ट्रीय राजमार्ग में बदल गया है। आज भी अवधतिरहूत रोड है। जब शासन जौनपुर के शाह वंश का हुआ तब आने जाने के लिए यह पक्का करवा दिया गया होगा लेकिन आने जाने का मार्ग यह हाल तक रहा है। क्यों कि उस जमाने में सामानों ढ़ोने के लिए ट्रक या अन्य वाहन नहीं थे। हमे यह ध्यान देना चाहिए कि तब सामान ढ़ोने के लिए नाव का प्रचलन था। आज कल के जो लड़के पढ़ने लिखने वाले है उन्हें इन सब का कोई फिक्र नहीं है इतना ही नहीं इस सड़क की आवश्यकता कर-वसूली, सेना के आवा-जाही व्यापार के लिए होना जरूरी था। इस सड़क के किनारे सराय जरूर मिलता है। सराय प्रथा को मजबूत करने के लिए शेरसाह शूरी ने काफी काम किया। आज शेरसाह शूरी सबसे अच्छा शासक माना जाता है लेकिन उनके नाम या उनका कोई स्मारक नहीं है। एक लड़का गांव से निकला और दिल्ली तक पहुॅच गया। वो देशी लड़का था। उसने कोई किला नहीं बनवाया उसने बनवाये जीटी रोड़, डाक व्यवस्था, सराय व्यवस्था। सराय की व्यवस्था में वेगूसराय जिले के कई गांव को सराय नाम से जाना जाता है। जहां सेना के साथ जब सेनापति चलता तो वेगम के लिए जो जगह दी गई वो बेगम की सराय के नाम से मशहूर हुई। वही आज बेगूसराय के नाम से जाना जाता है। 
उस जमाने में विभिन्न जातियों के इक्ठठा होने की प्रवृतियों को देखें तो उसके पीछे आर्थिक व भौगोलिक कारण जान पड़ता है। वाया नदी के किनारे देखें तो शाहपुरा में तेली की बड़ी आवादी है ऐसी बड़ी आवादी बोहाना में भी है। ये सब नदी ंके किनारे हैं। जहां इन तेलियों के घर कोल्हू चलते थे और जिसे बैल खीचता था। इस तरह हम देखते है कि इस इलाकों में कई तरह के परिवर्तन हुए लेकिन सिर्फ एक ऐसी जाति का असर नहीं है यहां। ठीक से देखंे तो दो ही गांव ऐसे रहे है जो नदीयों के किनारे है। जिनमे भूमिहार और ब्राह्मण है। ये दोनों खेती करने वाली जातियां है। इसी तरह साग-सब्जी की खेती करना तथा मछली पकड़ने जैसे वाले भी हैं और मछुआरे जैसी जातियां काफी समय तक साथ रहीं हैं। 
परिश्रम, कर्मठता और अक्खडपन बेगूसरायवासियों के स्वभाव में रहा है। लेकिन वही विशेषता पूरे चरित्र की नहीं रही यहीं दिनकर जैसे माहान कवि भी हुए हैं। लेकिन इसको क्या कहेंगे कि उन्हे साहित्य कारों में विरोचित कहा जाता है। 
आजादी के पूर्व के बेगूसरास जिले में बहूत सारे रिकार्ड उपलब्ध नहीं है लेकिन स्मृति से मैं बता सकता हूं यह भूखण्ड शांत नहीं बैठा होगा सघर्ष अवश्य चला होगा। अंग्रेजों के विरूद्ध उसके अवशेष हमे मिलते हैं। इस क्षेत्र में नील की खेती के लिए अनूकूलता रही है। अंग्रेज आये और नील को कोठियां खरीद ली। आज भी नील की कोठियों के अंश दिखाई पड़ते हैं। सबसे ज्यादा बेगूसराय में। इस प्रकार हम देखते है संघर्ष अनिवार्यतः बेगूसराय का चरित्र रहा है। बेगूसराय जिले में डा. श्रीकृष्ण कांग्रेसी का आना जाना था। सत्याग्रह जैसी चीजों को अपनाया जाता था। सबसे अधिक असर तो 1942 में दिखई दिया क्यों कि रेलवे की लाइने जिले को चारो तरफ थी। टेलीग्राफ, पोस्ट आॅफिस थी। ये सब आजादी आंदोलन के लोगों के निशाने पर थी। नतीजा यह हुआ कि बेगूसराय जिले में कुछ अच्छा भी हुआ और बुरा भी। अच्छा ये कि अब दंगे नहीं होते अच्छीखासी मुसलमानों की आबादी है। इसके बरक्स ये भी कि भारी संख्या में कार्यकर्ता बीजेपी की तरफ चले गये लेकिन दंगे की स्थिती नहीं है। अब तो सीपीएम से भी निकल कर बीजेपी की तरफ चले गये। यहां जो बुरा हुआ वह यह कि राजनीति का अपराधीकरण। पहले भी अपराधी को राजनीतिक संरक्षण देते थे पर तब अपराधी को सीधे राजनीति में भेजने से हिचकिचाते थे। लेकिन अब अपराधी स्वयं तय करता है और राजनीति की मुख्यधारा में जा बैठता है। राजनीति को यदि आगे बढ़ना है तो बेगूसराय को भी आगे बढ़ाना होगा। बेगूसराय को आगे बढने के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठ कर राजनीतिक शुद्धता बिजली का उपलब्धता जैसी समस्याओं को सुलझाने का उपाय करना होगा।

प्रस्तुति
सुभाष गौतम 

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