Friday, September 17, 2010

हिंदुस्‍तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन बरौनीः विकास के वादे कहां गए

चौथी दुनिया के लिये कुमार सुशांत

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बिहार का बरौनी स्थित हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचएफसीएल). 1990 के आसपास इस कारखाने में अच्छी ख़ासी मात्रा में उर्वरक का उत्पादन होता था, लेकिन 2002 में केंद्र में एनडीए और बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल के दौरान यह कारखाना घाटे के चलते बंद हो गया. कारखाना बंद होने से इससे जुड़े हज़ारों कामगार बेरोज़गार हो गए. इस क्षेत्र के लोगों की मानें तो 1990 से बिहार में शासन कर रहे लालू यादव से उनकी उम्मीदें न के बराबर थीं, लेकिन 2005 में सत्ता परिवर्तन के बाद आए नीतीश कुमार से उनकी काफी उम्मीदें जगी थीं, पर अब वो भी ख़त्म हो गईं. बेगूसराय ज़िला अंतर्गत सिमरिया निवासी ओमप्रकाश यादव पहले इस कारखाना में काम करते थे. वह कहते हैं, कारखाने की बंदी के लिए हम केंद्र को नहीं, अपने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दोषी मानते हैं. हमने उनके संसदीय उम्मीदवार को वोट दिया था और उन्होंने इस कारखाने को खुलवाने का वादा किया था.

बरौनी का खाद कारखाना 2002 से बंद पड़ा है. इसके लिए केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी ज़िम्मेदार है. मौजूदा जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार का कार्यकाल अब पूरा होने वाला है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं, लेकिन सरकार के दावों की हक़ीक़त बरौनी के इस कारखाने की हालत को देखकर समझी जा सकती है. नीतीश वादानुसार बंद पड़े उद्योग नहीं खुलवा सके, वहीं कामगारों का पलायन होता रहा.

बरौनी में तीन कारखाने हैं. पहला इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड का बरौनी तेलशोधक कारखाना, दूसरा बरौनी थर्मल पावर स्टेशन और तीसरा हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कॉरपोरेशन लिमिटेड. हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कारखाना 2002 से बंद पड़ा है. पिछले साल इसके पुनरुत्थान के लिए शिलान्यास करने रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां एक साथ पहुंचे. उस समय रामविलास पासवान केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री थे और लालू यादव रेल मंत्री. बिहार में तीनों परस्पर विरोधी नेताओं का एक साथ खड़े होकर किसी कार्य के प्रति जागरूकता दिखाना अपवाद माना जाता है. शिलान्यास के दौरान रामविलास पासवान ने कहा कि बिहार के विकास से जुड़े सभी मुद्दों पर हम साथ-साथ हैं. पासवान ने बताया कि इस कारखाने के नवीनीकरण का कार्य 2010 तक पूरा कर लिया जाएगा, जिस पर 4500 करोड़ रुपये की लागत आएगी और इसकी सालाना उत्पादन क्षमता 11.55 लाख मीट्रिक टन होगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यदि यह कारखाना निश्चित समय पर उत्पादन प्रारंभ कर देता है, तो विद्युत विभाग इस कारखाने पर 275 करोड़ रुपये का अपना बकाया माफ कर देगा. चूंकि घोषणा पासवान ने की थी, इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिजली बिल माफ करने संबंधी बात कर शर्त लगा दी. उन्होंने सोचा कि समय पर कारखाना तो खुलने से रहा तो क्यों न पासवान के भाषण की किरकिरी करा दें और अपने मुंह मियां मिट्ठू भी बन जाएं. नीतीश कुमार यह भूल गए कि वह राज्य के मुखिया हैं, ऐसे में अगर कोई केंद्रीय मंत्री बिहार के विकास की बात करता है तो उसे राजनीति से परे हटकर देखना चाहिए. लालू यादव ने भी बरौनी के निकट स्थित सोनपुर रेल मंडल के सिमरिया रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के नाम पर दिनकर नगर रेलवे स्टेशन करने और उसे एक आदर्श स्टेशन के रूप में विकसित करने की घोषणा कर दी. न तो कारखाने का नवीनीकरण कार्य शुरू हुआ, न कारखाने पर बिजली विभाग का बकाया माफ हुआ और न सिमरिया रेलवे स्टेशन का नाम बदला.

सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज़ एक्ट 1985 के आधार पर इस कंपनी को बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रीकंसट्रक्शन (बीआईएफआर) के हवाले कर दिया गया. बोर्ड द्वारा पेश रिपोर्ट में इन कंपनियों की हालत ठीक नहीं बताई गई. बोर्ड ने एचएफसी के पुनरुत्थान के लिए पैकेज की मांग की, लेकिन फंड के अभाव में निर्देशित राशि आवंटित नहीं की जा सकी, जिससे बरौनी प्लांट की हालत दिनोंदिन बदतर होती गई. एचएफसी की वित्तीय हालत सुधारने के लिए 1997 में आईसीआईसीआई की एक विशेषज्ञ टीम ने फिर से अनुशंसा की, जिस पर सरकार ने अमल करते हुए पुनरुत्थान के लिए 350 करोड़ रुपये के निवेश की स्वीकृति दी थी. यह तो सरकारी प्रक्रिया के मुताबिक़ था, लेकिन असल में केंद्र की यूपीए सरकार और राज्य की नीतीश सरकार अब तक इस प्लांट को खुलवाने में नाकाम रही है. प्लांट में काम करने वाले बबलू पासवान बताते हैं कि इसके खुलने की उम्मीद हम सालों से कर रहे हैं. हम लोगों ने मोनाज़िर हसन पर विश्वास करके उन्हें सांसद बनाया, लेकिन अब उनके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं. बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पूर्व महासचिव एवं 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहीं अमिता भूषण का कहना है कि नीतीश सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है. वह चाहते तो इस कारखाने को अपनी पहल से चला सकते थे, ताकि हज़ारों लोगों की रोजी-रोटी चलती रहे, लेकिन सरकार न तो कारखाना खुलवा सकी, न पलायन रोक सकी और न इस क्षेत्र के पिछड़े ग्रामीणों का विकास कर सकी.

भारत में कुल आबादी का 70 फीसदी हिस्सा सीधे तौर पर कृषि से जुड़ा है, लेकिन यहां कृषि की हालत नाज़ुक है. पिछले कई वर्षों से किसानों को सही समय पर उर्वरकों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है. नतीजतन, किसानों को ऊंची क़ीमतों पर उर्वरक ख़रीदना पड़ता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में 2002-06 के दौरान हर साल 17,500 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की. इसके पीछे कहीं न कहीं सूखा, कम उत्पादन, उचित मूल्य न मिलना और उर्वरकों की कालाबाज़ारी जैसी वजहें रहीं. दूसरी तऱफ देश में उर्वरक उत्पादन करने वाले कई सरकारी कारखाने बंद पड़े हैं. सरकार को समझना होगा कि यदि इन कारखानों को खुलवा दिया जाए तो न केवल बेरोज़गारी की समस्या किसी हद तक दूर हो जाएगी, बल्कि उर्वरकों की कालाबाज़ारी भी बंद हो जाएगी.

देश में हरित क्रांति लाने एवं किसानों को उर्वरक की समस्या से निज़ात दिलाने के मक़सद से यह कारखाना खोला गया था. दुर्भाग्य की बात यह कि ये कारखाने ऐसे समय में बंद पड़े हैं, जब देश में जनसंख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, बदतर हालात के चलते किसान आत्महत्या कर रहे हैं, कमरतोड़ महंगाई से ग़रीब हलकान हो रहे हैं. असल में हरित क्रांति की ज़रूरत तो अब है. इन कारखानों की बंदी के लिए केंद्र सरकार पूरी तरह ज़िम्मेदार है, लेकिन कहीं न कहीं राज्य सरकार को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी. बरौनी के इस कारखाने के बंद होने से हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए थे. उनकी उम्मीदें केंद्र सरकार के साथ-साथ बिहार से पलायन रोकने और रोज़गार दिलाने संबंधी वादे करने वाले नीतीश कुमार पर भी टिकी थीं, लेकिन राज्य के मुखिया उनकी उम्मीदों पर खरे उतरने में पूरी तरह नाकाम रहे. नीतीश कुमार को उद्योग खुलवाने की चिंता कम और हर साल विकास रिपोर्ट कार्ड बनाने की चिंता ज़्यादा है. वह स़िर्फ जनता दरबार और चुनिंदा विकास कार्यों के जरिए वाहवाही लूट रहे हैं. बेगूसराय ज़िले की आबादी तक़रीबन 18 लाख है, जिसमें 90 फीसदी से ज़्यादा लोग ग्रामीण इलाक़ों में रहते हैं और रहन-सहन एवं शिक्षा के मामले में काफी पिछड़े हैं. बिहार का यह एक ज़िला सरकारी दावों की सारी पोल खोल देता है. नीतीश कुमार सरकार का कार्यकाल पूरा होने वाला है. चुनाव में कुछ ही महीने शेष रह गए हैं. नीतीश एक बार फिर जीतकर आने का दावा कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या राज्य की दिक्कतों को समझने के लिए नीतीश कुमार को भी लालू यादव की तरह 15 वर्षों का समय चाहिए?

आंकड़ों में एचएफसी

  • 1968 में इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर खुला था बरौनी खाद कारखाना.
  • 1978 में फर्टिलाइज़र कॉ. ऑफ इंडिया बना हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कॉ.
  • बरौनी प्लांट की उत्पादन क्षमता एक लाख मीट्रिक टन से भी ज़्यादा थी.
  • पुराने उपकरणों की वजह से धीरे-धीरे प्लांट के उत्पादन पर असर.
  • 1997-98 में प्लांट का उत्पादन घटकर 20 हज़ार मीट्रिक टन से भी कम हो गया.
  • 1998 तक कंपनी को 145 करोड़ से अधिक का घाटा हुआ.
  • 2002 में प्राकृतिक गैस की अनियमित आपूर्ति से प्लांट बंद हो गया.

कोई हमारी भी सुनो

एचएफसी का बरौनी कारखाना बंद होने से हज़ारों कर्मचारियों की हालत सोचनीय हो गई. कारखाने में जिनकी नौकरी कम दिनों की बची थी, उन्हें पेंशन तो मिलने लगी, लेकिन जिनकी नौकरी 10 साल से अधिक बची थी, उन्हें ठेंगा दिखा दिया गया. कर्मचारियों का आरोप है कि कारखाना बंद होने की ख़बर पर जब उन्होंने मज़दूरी पुनरीक्षण और कारखाने से निकाले जाने के बाद अपने रोज़गार की मांग की तो उन्हें जबरन बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. बिहट निवासी अशोक सिंह पहले एचएफसी में काम करते थे. वह कहते हैं कि कारखाने में 1992 से मज़दूरी पुनरीक्षण बाकी है. उनकी नौकरी 22 साल शेष रहने के बावजूद उन्हें निकाल दिया गया. उनके सैकड़ों साथियों को भी जबरन कारखाने से निकाला गया. सबने मिलकर पटना उच्च न्यायालय में मुक़दमा कर दिया. अशोक इस बात से ख़ुश हैं कि इसी साल 28 जुलाई को अदालत ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया है. कर्मचारियों ने रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के पास अदालत के फैसले की प्रति और अपनी अर्जी भेजी है. एचएफसी के पूर्व कर्मचारी देवनंदन पासवान का कहना है कि पूर्व रसायन एवं उर्वरक मंत्री ने रामविलास पासवान ने उन्हें फिर से नौकरी देने की बात की थी, इसीलिए जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया, उन्हें मजदूरी पुनरीक्षण के साथ दूसरे प्लांटों में ही सही, पर नौकरी दी जाए. अदालत के फैसले के बावजूद कर्मचारियों को आशंका है कि कहीं रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय उनकी मांग ठंडे बस्ते में न डाल दे.

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